जब हिन्दू धर्म ग्रन्थ भी इस बात को कह रहे है की वनस्पति और मनुष्य में एक सामान जीव है फर्क सिर्फ इतना है के मनुस्य अपनी भावनाओं को प्रकट कर सकता है वनस्पति नहीं पर नां जानें कयूँ विज्ञानं के जमानें में भी अच्छे खासे पढ़े लोगों की समझ में एक ही बात बार समझनें में भी नहीं आती जान बुझ कर ढिठाई करना ठीक बात नहीं है इसी लिय कहा गया है के अनपढ़ जाहिल नहीं होता पढ़ लिखनें के बाद जहालत की बात करने वाला भी जाहिल हो सकता है अभी कई दिन पहले मेरे दोस्त गुप्ता जी नें कहा ठाकुर साहब त्यौहार मनानें के लिए जीव की हत्या करोगे मैंने कहा गुप्ता जी आप थोडा सा भोजन करने के लिए कितनी हत्याएं कर डालते है क्या आपको इस बात की जानकारी नहीं है साग सब्जी खानें के लिए खेतों में दवा का छिडकाव किया जाता है लाखों करोड़ों कीड़े मकोड़े मारने के बाद तब कहीं जा कर आपको भोजन में सब्जी नसीब होता है दही में करोड़ों से भी जियादा जीवित kitaadu मौजूद होते है
हम लोग सिर्फ एक जानवर को हलाल करते हैं तब जाके सैकड़ों लोग भोजन करते है अब यह बताइए मै कितना गलत हूँ और आप कितनें सही ? कायनात में सूरज चाँद सितारे बहारें फिजायें आदि जितनीं जितनीं भी चीजें इस्वर नें बनाई हैं वह सब चीजें मनुस्य की सेवा के लिय हैं और मनुष्य को अपनी उपासना के लिए बनाया है रही बात जीव हत्या की तो दुनिया में कौन सी चीज ऐसी है जिसमें जीव नहीं है मनुष्य अगर जीवों पर तरस खाएगा फिर खुद जीवित नहीं रह सकेगा जैसे की शेर अगर दुसरे जानवरों पर तरस खाएगा तो वह भी जीवित नहीं रहेगा अब भी दिमाग का सही इस्तेमाल करो और गल्त दिशा में न जा कर सही बातों पर विचार करें
15 comments:
bhot badhiya
lage raho seekh jaoge
@qasmi sahb hosla afzayi ka shukriya
@kapil sahab aap jyse behtrin logon ka sath raha to insaallah jarur sikh jaunga
Nice post .
'शाकाहार में मांसाहार'
@ आपको और सभी भाइयों को ईद मुबारक !
मेरे ब्लाग
hiremoti.blogspot.com
पर तशरीफ़ लाकर 'शाकाहार में मांसाहार' भी देख लीजिए ।
आपने साबित कर दिया कि आप वास्तव में ही शेर हैं । आपका भोजन भी शेरों वाला है ।
एक क्षत्रिय की गवाही पर लोग विचार करेंगे ऐसी उम्मीद करता हूँ ।
हठधर्मियों का कोई धर्म नहीं सिवाए हठधर्मी के ,
आप कोशिश करते सहिये शायद कुछ अकल वाले सबक सिख लें
dabirnews.blogspot.com
ajabgazab.blogspot.com
जीव हत्या तो हम सभी कर रहे हैं..
पर मुझे इस बात में अभी भी संशय है कि जब इतनी जीव हत्या हो रही है, तो फिर इसमें जानवरों को मार कर इसे बढाया क्यों जा रहा है?
अगर उतने में ही हमारा गुज़ारा हो सकता है तो उतने में क्यों हम संतुष्ट नहीं हैं?
hakeem sahab aapko our sabhi bhaion ko bhi eid ki bahut bahut mubarakbad insaallah mai aapke blog ko zarur padhunga
hakeem sahab allah ne hamen sher hi banaya hai yani asrful makhlukat magar jiyadatar log gadhe ban gaye hai dimag ka sahi istemal hi nahi karte
hakim sahab hosla afjai ke liye bahut bahut sukriya
pratik bhai isi liye to kah raha hu ke sabji kha ke jiyada jiwon ki hattya mat karo sirf gost hi khaya karo jisse kam se kam hattyaen hongi
Hey, I am checking this blog using the phone and this appears to be kind of odd. Thought you'd wish to know. This is a great write-up nevertheless, did not mess that up.
- David
जिस जीव को पांचों ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जाना जा सकता है । उस जीव की हत्या न्याय एवं नीति की दृष्टि से अनुचित है । जिस जीव की हत्या का न्याय और नीति को स्थापित करने एवं आत्मरक्षा से कोई संबंध नहीं है । इसलिए अन्याय एवं अनीति पर आधारित जीव हत्या धर्म नहीं हो सकती । जो कर्म धर्म के विरुद्ध हो, वह अधर्म है । धर्म तो अन्तिम समय तक क्षमा करने का गुण रखता है । जितना बड़ा पाप, उतना बड़ा प्रायश्चित ।
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