Saturday, December 11, 2010

पांच लाख से भी जियादा लोग फायदा उठा चुके हैं

प्यारे मालिक के ये दो नाम हैं जो कोई भी इनको सच्चे दिल से 100 बार पढेगा। 
मालिक उसको हर परेशानी से छुटकारा देगा और अपना सच्चा रास्ता
 दिखा कर रहेगा। वो दो नाम यह हैं।
या हादी
(ऐ सच्चा रास्ता दिखाने वाले)

या रहीम
(ऐ हर परेशानी में दया करने वाले)

आइये हमारे ब्लॉग पर और पढ़िए एक छोटी सी पुस्तक 
{आप की अमानत आपकी सेवा में} 
इस पुस्तक को पढ़ कर
 पांच लाख से भी जियादा लोग 
फायदा उठा चुके हैं ब्लॉग का पता है aapkiamanat.blogspotcom

19 comments:

Ayaz ahmad said...

nice post.

Ayaz ahmad said...

ईश्वर एक है और उसने मानवता को सदा एक ही धर्म की शिक्षा दी है। मानव का धर्म है मानवता । मानवता के लिए ईश्वर के धार्मिक अनुशासन को धारण करना ज़रूरी है । आज आदमी किसी भी अनुशासन को मानने के लिए तैयार नहीं है , न तो ईश्वर के अनुशासन को और न ही उस अनुशासन को जिसके नियम उसने खुद बनाए हैं अपने लिए ।
किसी भी अनुशासन को न मानने का मतलब है अराजकता । आज हर तरफ़ अराजकता है ।

Ayaz ahmad said...

आइये हमारे ब्लॉग पर और पढ़िए एक छोटी सी पुस्तक

Anonymous said...

kya

Ayaz ahmad said...
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Anonymous said...

yhi

Anonymous said...

tarika

Anonymous said...

hai

Anonymous said...

tumhara

Ayaz ahmad said...
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Ayaz ahmad said...
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वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...
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Anonymous said...
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Thakur M.Islam Vinay said...
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DR. ANWER JAMAL said...

धर्म और अध्यात्म
'अध्यात्म' शब्द 'अधि' और 'आत्म' दो शब्दों से मिलकर बना है । अधि का अर्थ है ऊपर और आत्म का अर्थ है ख़ुद । इस प्रकार अध्यात्म का अर्थ है ख़ुद को ऊपर उठाना । ख़ुद को ऊपर उठाना ही मनुष्य का कर्तव्य है। ख़ुद को ऊपर उठाने के लिए प्रत्येक मनुष्य को कुछ गुण धारण करना अनिवार्य है जैसे कि सत्य, विद्या, अक्रोध, धैर्य, क्षमा और इंद्रिय निग्रह आदि । जो धारणीय है वही धर्म है । कर्तव्य को भी धर्म कहा जाता है। जब कोई राजा शुभ गुणों से युक्त होकर अपने कर्तव्य का पालन करता तभी वह ऊपर उठ पाता है । इसे राजधर्म कह दिया जाता है । पिता के कर्तव्य पालन को पितृधर्म की संज्ञा दे दी जाती है और पुत्र द्वारा कर्तव्य पालन को पुत्रधर्म कहा जाता है। पत्नी का धर्म, पति का धर्म, भाई का धर्म, बहिन का धर्म, चिकित्सक का धर्म आदि सैकड़ों नाम बन जाते हैं । ये सभी नाम नर नारियों की स्थिति और ज़िम्मेदारियों को विस्तार से व्यक्त करने के उद्देश्य से दिए गए हैं। सैकड़ों नामों का मतलब यह नहीं है कि धर्म भी सैकड़ों हैं । सबका धर्म एक ही है 'शुभ गुणों से युक्त होकर अपने स्वाभाविक कर्तव्य का पालन करना ।

Unknown said...

jo hai , wah hai, yah sach hai , din hai to rat bhi hogi , achchhe hi to bure bhi honge ,jab tak achchha nahi hoga to bure ka kimat kya ?aur jab tak bura n hoga to achchhe ki kimat kya ?ismen jhagada kaisa , lafada kaisa ?shikawa- shikayat kyon ?jo hona hai hokar rahega , aaj tak koi n rok paya hai , n rok payega fir dekhate jao duniyan isi ka nam hai |

Muhammad Ibrahim said...

प्यारे मालिक के ये दो नाम हैं जो कोई भी इनको सच्चे दिल से 100 बार पढेगा।
मालिक उसको हर परेशानी से छुटकारा देगा और अपना सच्चा रास्ता
दिखा कर रहेगा। वो दो नाम यह हैं।
या हादी
(ऐ सच्चा रास्ता दिखाने वाले)


या रहीम
(ऐ हर परेशानी में दया करने वाले)

Thakur M. islam Vinay साहब सलाम आलैकुम। आपने जो दो कलि में या हादी
-ऐ सच्चा रास्ता दिखाने वाले, या रहीम
(ऐ हर परेशानी में दया करने वाले) के विषय में जो 100 मर्तवा पढ्ने का जिक्र किया है वह कौन सा हदीसमें से साबित है जरा हमको वह हदीसको हवाला दे के प्रमाण पेश कर सकते हैं । मै आपका शुभ चिन्तक और पाठक हुँ ।

Dinesh pareek said...

बहुत ही सुन्दर लिखा है अपने इस मैं कमी निकलना मेरे बस की बात नहीं है क्यों की मैं तो खुद १ नया ब्लोगर हु
बहुत दिनों से मैं ब्लॉग पे आया हु और फिर इसका मुझे खामियाजा भी भुगतना पड़ा क्यों की जब मैं खुद किसी के ब्लॉग पे नहीं गया तो दुसरे बंधू क्यों आयें गे इस के लिए मैं आप सब भाइयो और बहनों से माफ़ी मागता हु मेरे नहीं आने की भी १ वजह ये रही थी की ३१ मार्च के कुछ काम में में व्यस्त होने की वजह से नहीं आ पाया
पर मैने अपने ब्लॉग पे बहुत सायरी पोस्ट पे पहले ही कर दी थी लेकिन आप भाइयो का सहयोग नहीं मिल पाने की वजह से मैं थोरा दुखी जरुर हुआ हु
धन्यवाद्
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/

Yusha shad khan said...

kedar nath ji . 100 padhna isliye kaha gaya hai k insan ki zuban in kalmo se munawar ho jaye .warna aap kam ziada bhi padh sakte hai bas limit isliye lagayi k itni bar padh lena chahiye